बी एस-सी - एम एस-सी >> बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान
प्रश्न- जीन की अन्योन्य क्रिया से आप क्या समझते हैं? उदाहरणों की सहायता से जीन की अन्योन्य क्रिया की विधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
जीन इन्टरएक्शन में विभिन्न प्रकार के ऐपीस्टासिस का विस्तृत वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए -
(i) प्रबलता
(ii) प्रभावी प्रबलता
(iii) अप्रभावी प्रबलता।
2. बहुजीनी वंशागति का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
जीन्स की अन्योन्य क्रिया
(Interaction of Genes)
मेण्डल की संकल्पना के अनुसार जन्तु एवं पेड़-पौधों में प्रत्येक लक्षण के लिए एक अलग जीन होता है लेकिन अन्य वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों में पाया कि यह तथ्य सभी जीवों के सभी लक्षणों के लिए लागू नहीं किया जा सकता। तभी संयुक्त कारक की धारणा का प्रतिपादन किया गया। इस संकल्पना के अनुसार किसी लक्षण के निर्धारण के लिए एक से अधिक जीन्स हो सकते हैं अथवा फिर एक जीन बहुत से लक्षणों को भी प्रभावित कर सकता है। सर्वप्रथम बेटसन (Bateson) ने इस संकल्पना को प्रतिपादित किया था। अतः इसे बेटसन की कारक परिकल्पना भी कहते हैं। इसके अनुसार प्राणियों के आनुवंशिक लक्षण सभी आनुवंशिक कारकों के बीच अन्योन्य क्रिया के फलस्वरूप विकसित होते हैं। जीन्स की अन्योन्य क्रिया निम्नलिखित प्रकार की होती है -
जीन अन्योन्य क्रियाओं के प्रकार
(Types of Gene Interactions)
जीन अन्योन्य क्रियाओं के निम्नलिखित प्रकार होते हैं -
1. प्रबलता जीन अन्योन्य क्रिया (Epistasis Gene Interaction) - कभी-कभी अलग-अलग बिन्दु पथों पर स्थित दो जोड़ी स्वतन्त्र जीन (जो एक-दूसरे के युग्मविकल्पी नहीं होते) जन्तु के एक ही लक्षण को इस तरह से प्रभावित करते हैं कि एक जीन दूसरे के प्रभाव को छिपा देता है। इस घटना को प्रबलता कहते हैं। जो जीन दूसरे जीन के प्रभाव को छिपा लेता है, उसे प्रबल कारक तथा जिस जीन की अभिव्यक्ति रुक जाती है, उसे अबल कारक (hypostatic factor) कहते हैं। यद्यपि यह प्रभाविता व अप्रभाविता के समान है किन्तु इसमें दोनों कारक युग्मविकल्पी न होकर स्वतन्त्र जीनों के रूप में होते हैं।
प्रभाविता में इण्टरएलीलिक या इण्टराजेनिक जीन सुप्रीशन होता है और प्रबलता में इण्टरजेनिक जीन सुप्रीशन होता है। प्रबलता दो प्रकार की हो सकती है
(i) प्रभावी प्रबलता (Dominant Epistasis) - प्रभावी प्रबलता में एपिस्टेटिक जीन का प्रभावी युग्मविकल्पी (dominant allele) दूसरे जीन-युग्म के प्रभाव को छिपा लेता है अथवा फिर इसके प्रभाव को रूपान्तरित करता है।
उदाहरण 1. कुत्तों में प्रभावी प्रबलता (12:3: 1 का अनुपात) कुत्तों में त्वचा का रंग दो जोड़ी युग्मविकल्पियों पर निर्भर करता है। इनमें से एक जोड़ी युग्मविकल्पी Bb है। B. जीन काला तथा b जीन भूरे आवरण का कारक है। दूसरी जोड़ी युग्मविकल्पी Ii है। I जीन की उपस्थिति से रंजक के लिए Bb जीन होने पर भी रंजक का निर्माण नहीं होता। अतः समयुग्मजी भूरे तथा समयुग्मजी श्वेत कुत्तों में संकरण करने पर श्वेत, काले तथा भूरे आवरण वाले कुत्ते 12 3 1 के अनुपात में उत्पन्न होते हैं। निम्नलिखित चित्र द्वारा यह प्रमाणित हो जाता है कि वास्तव में यह परिवर्तन द्विसंकरण अनुपात है तथा इसमें जीन प्रबल जीन तथा B जीन है।
कुत्ते में प्रबल या निरोधी जीन द्वारा आवरण के रंग की प्रभावी प्रबलता
(iii) Dogs with B-I-genotype are all white.
चैकर बोर्ड से स्पष्ट है कि जब bbi जीनी संरचना वाले भूरे कुत्तों का BBII जीनी संरचना वाले श्वेत कुत्तों से संकरण होता है तो F, पीढ़ी में सभ्ज्ञी सन्तति कुत्ते श्वेत आवरण Bbli वाले होते हैं। F2 पीढ़ी में तीन प्रकार के कुत्ते श्वेत, काले व भूरे 12: 3:1 के अनुपात में बनते हैं। F, पीढ़ी में संकरण से चार प्रकार के युग्मक BI, bI, Bi तथा bi बनते हैं। इनके प्रत्याशिक परिणाम उपरोक्त चैकर बोर्ड दिये गये हैं।
F2 पीढ़ी में 16 कुत्तों में से 12 में कम से कम I जीन है तथा ये कुत्ते श्वेत होते हैं। तीन में कम से कम एक B जीन है, किन्तु I जीन नहीं है, अतः ये काले हैं तथा एक में न B जीन है और न ही I जीन है, इसलिए यह भूरा होगा।
(ii) अप्रभावी प्रबलता (Recessive Epistasis) - अप्रभावी प्रबलता में प्रबलता जीन युग्म अप्रभावी होता है तथा यह अन्य विस्थलों पर स्थित जीन की अभिव्यक्ति को रोकता है। अप्रभावी प्रबलता के जीन दो प्रकार की अन्योन्य क्रियाएँ करते हैं -
(a) पूरक जीन्स की अन्योन्य क्रिया (Interaction of Complementary Genes)- पूरक जीन पृथक जीन विस्थलों पर उपस्थित दो जोड़ी प्रभावी जीन हैं जो अन्योन्य क्रिया द्वारा केवल एक फोनोटाइप को अभिव्यक्ति करते हैं। इनमें से कोई भी जीन अकेला फीनोटाइप की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता। इससे स्पष्ट है कि दोनों पूरक जीन किसी फीनोटाइप की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक होते हैं।
(Complementary Genes for Flower Colour in Sweet Pea)
प्रसिद्ध वैज्ञानिक बेटसन ने मटर के पौधों में दो ऐसी उपजातियों या स्ट्रेन को पृथक किया जिनसे स्वनिषेचन के फलस्वरूप श्वेत पुष्प वाले मटर के पौधे विकसित होते हैं। श्वेत पुष्पों वाले दो विशेष स्ट्रेन का परस्पर कृत्रिम संकरण करने पर F पीढ़ी के पौधों पर बैंगनी पुष्प लगते हैं। जब F पौधों में स्वपरागण होता है तो F, पीढ़ी में बैंगनी व श्वेत पुष्पों वाले पौधों में 9: 7 का अनुपात होता है। बेटसन के अनुसार 9: 7 का अनुपात मेण्डेलियन अनुपात 9 3 3 1 का परिवर्तित अनुपात है। उसके अनुसार पुष्पों में बैंगनी वर्णक की उत्पत्ति का आधार दो पूरक जीन C तथा P हैं। बैंगनी रंग के लिए इन दोनों का होना जरूरी है। इनमें से कोई अकेला जीन बैंगनी रंग उत्पन्न नहीं कर सकता।
उपर्युक्त दोनों जीनों में से जीन C एक रंगहीन क्रोमोजन के उत्पादन के लिए उत्तरदायी हैं। यह एक ऐसा एन्जाइम बनाता है जो बैंगनी रंजक, एन्थोसायनीन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक पदार्थ के निर्माण को उत्प्रेरित करता है। जीन P उस बैंगनी के निर्माण को नियन्त्रित करता है जो एन्थोसायनीन में रूपान्तरण के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ को उत्प्रेरित करता है। मटर के पौधे में दोनों प्रभावी जीनों C व P के उपस्थित होने पर इस पर बैंगनी पुष्प लगते हैं। पौधे में CCpp जीन होने पर यह एन्थोसायनीन के लिए आवश्यक पदार्थ का निर्माण तो करेगा किन्तु P जीन न होने के कारण इससे एन्थोसायनीन का निर्माण नहीं हो पायेगा। इसी कारण यह बैंगनी पुष्पों के स्थान पर श्वेत पुष्प ही धारण करेगा। इसी प्रकार इसमें प्रभावी जीन P होने पर भी यह एन्थोसायनीन के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ का निर्माण करेगा (ccPP क्योंकि इसमें प्रभावी जीन C का अभाव है)। अतः दोनों अवस्थाओं में ही किसी एक प्रभावी जीन के अनुपस्थित होने पर यह केवल श्वेत पुष्प धारण करेगा।
मीठी मटर में पुष्पों के रंग के लिए 9: 7 का पूरक अनुपात
जब बेटसन ने मटर (Lathyrus) के दो प्रभेदों में क्रॉस कराया तो F में सभी सन्तति पौधे बैंगनी रंग के थे। F, पीढ़ी के बैंगनी पुष्पों में स्वपरागण कराने पर बैंगनी व श्वेत 907 के अनुपात में बने जो द्विसंकर क्रॉस के 9: 3:31 अनुपात का रूपान्तरण है। इससे स्पष्ट है कि मटर के दोनों प्रभेदों का जीनोटाइप क्रमश: ccPP तथा CCpp है।
मटर के F, 2 परिणाम
Genotype | Enzymes | Phenotype |
Number of Plants |
Ratio |
CCPP | Procfss both the Enzymes | 1 | ||
CcPP CcPp CCPp |
1.For the formation of raw material for anthocyanim 2.For the formation of raw material in to anthocyanim |
Purple | 2 4 2 |
9 |
CCpp Ccpp |
Process one enzyme only for the formation of raw materialin | White | 3 | |
ccPP | Enzymes only for the formation of raw materialin enzymes in to anthocyanim | White | 3 | 7 |
ccpp | No enzyme | White | 3 |
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अतः मटर (Lathyrus) के फूलों का रंग C व P, दो कारकों की अन्योन्य क्रिया के फलस्वरूप होता है।
(b) सम्पूरक जीन्स की अन्योन्य क्रिया (Interaction of Supplementary Genes) - सम्पूरक जीन सामान्य जीन के प्रभाव को पूर्णतया बदल देता है। इसका अभिप्राय यह है कि कोई जीन एक विशेष लक्षण का निर्धारण करता है किन्तु सम्पूरक जीन इस जीन के प्रभाव को बदल देता है। यह सम्पूरक जीन दूसरे विस्थल पर होता है।
उदाहरण - चूहों में त्वचा का रंग (9: 3 : 4 का अनुपात) चूहों में त्वचा का रंग अप्रभावी प्रबल जीन के नियन्त्रण में होता है।
Genotype | C-A | ccA- | C-aa | ccaa |
Phenotype | Agouti | Albino | Black | Albino |
Ratio | 9 | 1. | 3 | 3 |
1. Agouti त्वचा का वन्य वर्ण है जो non-agouti (काला) पर प्रभावी होता है। यह जीन A की उपस्थिति में विकसित होता है।
2. Black या non-agouti त्वचा का वर्ण जीन C की उपस्थिति में उत्पन्न होता है। यह. agouti वर्ण के लिए A जीन के अप्रभावी होने पर ही विकसित होता है।
3. जीन A के प्रभावी या अप्रभावी होने पर भी समयुग्मजी cc चूहों का वर्ण albino होता है
अर्थात्
Gene C → produces black colour
its allele c → acts as an epistatic gene
Gene A → interacts with gene C and changes black colour to agouti
its allele a → is recessive
Gene C Gene A2
Precursor molecule ----------------------- Black pigmen --------------------
C - A-
Agouti Pattern (Colourless)
स्पष्ट है कि जीन C एक रंगहीन पदार्थ से काले रंजक के निर्माण का नियमन करता है। जीन A की उपस्थिति में काला रंजक agouti pattern में जमा होता है। cc समयुग्मजी अप्रभावी जीनोटाइप होने पर A जीन या इसका ऐलील उपस्थित होने पर भी काला रंजक निक्षेपित नहीं होता है। अतः जीनोटाइप Cc जीन A की अभिव्यक्ति का दमन करता है तथा इसे अभिव्यक्त नहीं होने देता है। इसे सम्पूरक जीन अन्योन्य क्रिया भी कहते हैं।
चूहों में अप्रभावी प्रबलता द्वारा त्वचा के वर्ण की वंशागति
2. द्विक जीन अन्योन्य क्रिया 151 का अनुपात) (Duplicate Gene Interaction 15: 1 Ratio) - जब किसी प्राणी के जीनोटाइप में एक स्थान पर दो जोड़ी समान युग्मविकल्पी या एलील (alleles) होते हैं जिनमें से प्रत्येक एक ही लक्षण को समान रूप से निर्धारित करता है, तो इस प्रकार के जीन को द्विक कारक (duplicate factors) कहते हैं। शैफर्ड पर्स नामक खरपतवार पौधों में दो प्रकार की फलियाँ पायी जाती हैं (i) तिकोनी, तथा (ii) लम्बी व बेलनाकार। इनमें संकरण कराने पर F2 पीढ़ी में तिकोनी तथा लम्बी व बेलनाकार फलियों में 15 1 का अनुपात होता है।
तिकोनी फली वाले पौधों का जीनोटाइप TTDD होता है। इसमें T व D कारक दोनों मिलकर या अलग-अलग भी फलियों के तिकोने आकार का निर्धारण करते हैं। लम्बी फलियों वाले पौधे केवल तभी बनते हैं जब इन दोनों में कारकों का अभाव होता है।
द्विक कारकों को दिखाने के लिए शैफर्ड पर्स पौधे की तिकोनी व लम्बी फली वाले पौधों में संकरण
3. सहयोगी कारक : 9: 3:3: 1 का अनुपात (Collaborator Factors - 9:3: 3:1Ratio) - इसमें दो भिन्न जीन स्वतन्त्र रूप से स्थित होते हैं, जो अन्योन्य क्रिया द्वारा एक ही लक्षण को इस प्रकार प्रभावित करते हैं कि एक पूर्णतः भिन्न फीनोटाइप में विकसित होता है जो किसी भी जीन द्वारा अभिव्यक्त नहीं होता।
सहयोग (collaboration) का उदाहरण कुक्कुटों में कंकत की आवृति की वंशागति से मिलता है। इसका अध्ययन बेटसन व पुन्नेट ने किया था। इनमें दो जीन युगल कंकत के विकास को प्रभावित करते हैं। जीन R से गुलाब कंकत (rose comb) तथा जीन P से मटर कंकत बनता है। गुलाब व मटर कंकत दोनों ही एकल कंकत पर प्रभावी है। कुक्कुटों की वाइआन्दोत (Wyandottes) जाति में गुलाब कंकत तथा ब्राहास जाति में मटर कंकत होता है। इन दोनों नस्लों में संकरण के फलस्वरूप F1 पीढ़ी में अक्षोट कंकत- (walnut comb) विकसित होता है। यह प्रथम दोनों कंकतों से सर्वथा भिन्न है। F1 कुक्कुटों में परस्पर संगम कराने पर F2 पीढ़ी में चार प्रकार के फीनोटाइप-अक्षोट, गुलाब, मटर व एकल कंकत 9: 3:3:1 के अनुपात में विकसित होते हैं। इनमें दो लक्षण (अक्षोट तथा एकल कंकत) जनकों में नहीं थे।
(i) Gene R - produces rose comb
(ii) Gene P - produces pea comb
(iii) Gener or P - produces single comb
(iv) Gene R+P-produces walnut comb
कुक्कुटों में गुलाब कंकत व मटर कंकत की वंशागति
Genotype | R-P- | R-pp | rrP- | rrPP |
Phenotype | Walnut | Rose | Pea | Single |
Ratio | 9 | 3 | 3 | 1 |
4. बहुजीनी वंशागति या संचयी जीन अन्योन्य क्रिया (Polygenic Inheritance or Cumulative Gene Interaction) - संचयी जीन अन्योन्य क्रिया में प्रभावी जीन की संख्या के बढ़ने के साथ-साथ लक्षण में और अधिक संकलन होते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि जितनी ही जीन्स की संख्या अधिक होगी उतना ही जीन्स का प्रभाव अधिक दिखाई देता है। जैसे एक कप पानी में अगर एक ही जगह दो चम्मच चीनी डाली जाये तो मीठा अधिक होगा और अगर एक चम्मच चीनी और मिला दी जाये तो मीठा और अधिक और......। ..... इसी प्रकार संचयी जीन्स के अगर एक से अधिक अर्थात् दो या तीन जोड़े हों तो उनका प्रभाव उसी अनुपात में बढ़ जाता है।
संचयी जीन को मात्रात्मक, बहुजीन तथा इनकी वंशागति को पोलीजीनी (polygenic) भी कहते हैं।
डेवनपोर्ट ने कुछ नीग्रो एवं गोरी मानव जातियों के बीच हुई शादियों के वंश इतिहास का अध्ययन किया और पाया कि F1 पीढ़ी में इस प्रकार की शादी के फलस्वरूप जो बच्चे पैदा हुए वे सभी मुलैटो (mulatto) कहलाये। F2 पीढ़ी में मुलैटो व गोरे बच्चों में 151 का अनुपात था। इन 15 मुलैटो में कुछ नीग्रो के समान काले थे और बाकी सभी में कम और गहरे रंग की अलग-अलग छाया थी।
मनुष्य में बहुजीनी अन्योन्य क्रिया द्वारा वर्ण नियन्त्रण - अविकल्पी B1- तथा B2 - की संचयी क्रिया द्वारा वर्ण निर्धारण
1. नीग्रो जैसा गहरा वर्ण समयुग्मजी प्रभावी, जिनके दोनों ऐलील प्रभावी होते हैं, द्वारा उत्पन्न होता है :
B1B1 B2 B2
2. श्वेत (albino) वर्ण वाले व्यक्तियों में दोनों जीन युग्मों के ऐलील अप्रभावी (समयुग्मजी अप्रभावी) होते हैं :
b1b1b2b2
3. मुलैटो वर्ण के व्यक्तियों में दो प्रभावी जीन होते हैं जो एक ही जीन युग्म या दो भिन्न युग्मों n के ऐलील (युग्मविकल्पी) होते हैं :
B1 – B2 - or B1 B1 b2b2 or b1b1 B2 B2
मनुष्य में लम्बाई, शरीर का भार तथा बुद्धिमत्ता, मवेशियों में दुग्ध उत्पादन, मक्का व गेहूँ में बीजों का वर्ण तथा उत्पादन आदि सभी मात्रात्मक लक्षण हैं। गेट्स (Gates) के अनुसार मनुष्य में त्वचा का वर्ण जीन के तीन युग्मों द्वारा नियंत्रित होता है। कर्ट स्टर्न (Curt Stern) के अनुसार जीन्स के छः युग्मों का वर्णक उत्पादन में योगदान होता है।
5. जीन की बहुप्रभाविता का प्रभाव (Pleiotropic Effect of Genes) - कुछ जीन ऐसे भी होते हैं जो अकेले ही एक से अधिक लक्षणों को प्रभावित करते हैं जैसे घातक जीन (lethal genes) कुछ जीन्स ऐसे होते हैं जिनकी उपस्थिति से या तो जनन कोशिकाएँ ही नष्ट हो जाती हैं अथवा फिर भ्रूण विकसित होने से पहले ही मर जाता है। ऐसे जीन्स को घातक जीन या घातक कारक कहते हैं। अधिकतर घातक जीन अप्रभावी होते हैं तथा केवल समयुग्मजी अवस्था में ही घातक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। विषमयुग्मजी अवस्था में घातक जीन घातक प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। परन्तु इनकी उपस्थिति में संरचनात्मक परिवर्तन उत्पन्न हो सकते हैं। घातक जीन की उपस्थिति से जीव के जीवन पर किसी भी समय घातक प्रभाव हो सकता है। क्यूनोट (Cuenot) ने चुहियों में घातक जीन का उदाहरण प्रस्तुत किया। पीले रंग वाली चुहियों के संकरण के फलस्वरूप पीले व सफेद रंग की चुहियाँ 2: 1 अनुपात में बनती हैं। काफी समय तक इस अपवाद का कारण ज्ञात न हो सका। सन् 1971 में स्टिगलेडर (Stiegleder) ने बताया कि इस प्रकार के संकरण में 1/4th चूहियाँ भ्रूणावस्था में ही मर जाती हैं तथा ये अजन्मी चुहियाँ घातक जीन Y के लिए समयुग्मी हैं। अगर हम भ्रूणावस्था में मरी हुई 1/4 चूहियों को भी साथ में जोड़ लें तो वही मेण्डल का 3: 1 का अनुपात आ जाता हैं। क्यूनोट ने सुझाया कि पीला रंग Y - जीन के कारण होता है जो घातक होते हैं किन्तु यह घातक लक्षण प्रभावी होता है। y इसका अप्रभावी युग्मविकल्पी है। अगर YY - समयुग्मी अवस्था में हों तो घातक जीन के प्रभाव से पीले रंग की समयुग्मी चुहिया मर जाती है। विषमयुग्मी (Yy) अवस्था में होने पर पीला रंग तो विकसित होता है लेकिन इसका घातक प्रभाव नहीं होता।
चुहिया में जीन Y की बहुप्रभाविता
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- प्रश्न- लिंग सहलग्न वंशागति के प्रारूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अफ्रीकी निद्रा रोगजनक परजीवी की संरचना एवं जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वुचरेरिया बैन्क्रोफ्टाई के वितरण, स्वभाव, आवास तथा जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- एण्टअमीबा हिस्टोलायटिका की संरचना, जीवन-चक्र, रोगजन्यता एवं नियंत्रण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अफ्रीकी निद्रा रोग क्या है? यह कैसे होता है? इसके संचरण एवं रोगजनन को समझाइए। इस रोग के नियंत्रण के उपाय बताइए।
- प्रश्न- फाइलेरिया क्या है? इसके रोगजनकता एवं लक्षणों तथा निदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया के प्रजनन एवं संक्रमित रोगों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया में प्रजनन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।